2 मिनट लगेंगे, लेकिन ज़रूर पढ़ें!

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परेल क्षेत्र के प्रसिद्ध

टाटा कैंसर अस्पताल के सामने

फुटपाथ पर खड़ा एक तीस वर्षीय युवक

नीचे खड़ी भीड़ को टकटकी लगाए देखता रहता था।

मृत्यु के द्वार पर खड़े मरीजों के चेहरों पर दिखने वाला वह डर,

उनके रिश्तेदारों की बेबस दौड़भाग देखकर

वह युवक बहुत व्याकुल हो जाता था।

ज्यादातर मरीज बाहर गांव से आए गरीब लोग होते थे।

किससे मिलना है, क्या करना है,

यह तक उन्हें पता नहीं होता था।

न सिर्फ दवा-पानी बल्कि उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं होते थे।

यह सब देखकर वह युवक उदास मन से घर लौटता था।

उसके मन में बार-बार यही विचार आता कि

"इन लोगों के लिए कुछ करना चाहिए!"

दिन-रात उसने इसी सोच में खुद को लगा दिया।

और एक दिन उसने इसका हल निकाल ही लिया।

अपना अच्छी तरह चल रहा होटल उसने किराए पर दे दिया,

और कुछ पैसे इकट्ठा कर

टाटा अस्पताल के सामने

कोंडाजी चॉल के रास्ते पर अपना यज्ञ शुरू किया।

एक ऐसा यज्ञ, जो अगले 27 सालों तक अविरत चलता रहेगा,

यह खुद उसे भी अंदाज़ा नहीं था।

कैंसरग्रस्त मरीजों और उनके परिजनों को मुफ्त भोजन

देने की उसकी यह पहल क्षेत्र के अनगिनत लोगों को पसंद आई।

शुरुआत में 50-60 लोगों को भोजन देने का यह प्रयास

धीरे-धीरे 100, 200, 300 तक पहुँचा

और फिर अनगिनत मददगार उससे जुड़ते गए।

साल-दर-साल यह कार्य बढ़ता गया।

न ठंड, न गर्मी, न मुंबई की तेज बारिश

उसके इस यज्ञ को रोक पाई।

धीरे-धीरे हर दिन मुफ्त भोजन पाने वालों की संख्या 700 से भी ज्यादा हो गई।

हरकचंद सावला सिर्फ यहीं नहीं रुके।

उन्होंने ज़रूरतमंद मरीजों को मुफ्त दवाइयाँ भी उपलब्ध कराना शुरू किया।

इसके लिए उन्होंने एक दवा बैंक खोली,

जिसमें तीन फार्मासिस्ट, तीन डॉक्टर और कई समाजसेवी कार्यरत हैं।

कैंसर से पीड़ित बच्चों के लिए उन्होंने "टॉय बैंक" भी शुरू किया।

आज, उनका स्थापित "जीवन ज्योत" ट्रस्ट 60 से अधिक सामाजिक कार्यों में लगा हुआ है।

57 वर्षीय हरकचंद सावला जी आज भी उसी जोश से सेवा में लगे हुए हैं।

उनके इस अतुलनीय कार्य और समर्पण को अपने शब्दों में बखान करने में भी खुद को बोना महसूस कर रहा हूं शत-शत नमन! है ऐसे ईश्वर स्वरूप सावला जी को

हमारे देश में करोड़ों लोग 24 साल तक क्रिकेट खेलने वाले सचिन तेंदुलकर को भगवान मानते हैं,

लेकिन 27 वर्षों में 10-12 लाख कैंसरग्रस्त मरीजों और उनके परिजनों को मुफ्त भोजन देने वाले

मुंबई के हरखचंद सावला को शायद ही कोई जानता हो।

उन्हें भगवान मानना तो दूर, लोग उनका नाम भी नहीं जानते।

भगवान तो हमारे आसपास ही होते हैं, लेकिन हमें उनकी पहचान नहीं होती।

पिछले 27 सालों में लाखों कैंसरग्रस्त मरीजों और उनके परिवारों को अगर भगवान मिले हैं तो हरक चंद सावला जी के रूप में!

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