RSS की स्थापना भारत की आजादी से पहले 1925 में हुई !!




RSS  की  स्थापना  भारत  की आजादी  से  पहले 1925 में  हुई,   देश  में  हिन्दू  तब भी  थे ।

लेकिन  वो RSS के  साथ नहीं, महात्मा गाँधी  के  साथ चले।
 
इस  साथ के बदले  गाँधी ने  हिंदुओं  की जमीन काट कर   मुसलमानों को  दे दी, वो  जमीन जो  हज़ारों साल से हिंदुओं  की  थी।

    क्षणिक  आवेश के  बाद शांत हुआ देश का  हिन्दू तब भी गोडसे  के  साथ नहीं गया, नेहरू   के  साथ गया।

चार दशक बाद, 1980 में  भाजपा बनी  लेकिन  देश का हिन्दू   तब भी भाजपा  के साथ नहीं  था, इंदिरा  के साथ था, राजीव के  साथ था।

तब संसद भवन/ राष्ट्रपति भवन में रोजा इफ्तार  होता था,हिन्दू ने कोई ऐतराज  नहीं किया।

हिन्दू तो अपने घर में माता को चूनर चढ़ा कर खुश था।

हज के लिए सब्सिडी दी जा रही थी, हिन्दू तब अमरनाथ वैष्णो देवी की यात्रा में आतंकियों  की गोली खा कर  भी खुश था।

ट्रेनों में, पार्कों में, बसों में, सड़कों को घेर कर  नमाज होती थी।

बेचारा हिन्दू खुद को बचा के कच्ची पगडंडी से घर-ऑफिस  निकल जाता था।

( दिल्ली में CAA,NRC के विरोध में महीनों धरना चला, हिन्दू १५-२० किमी चक्कर लगाकर घर आफिस जाता था लेकिन फ्री के चक्कर में केजरीवाल को जिताया। भीषण  दंगों का  दंश झेला !

पूरे देश में  वक्फ की आड़ में अनगिनत मस्जिदें बन रही थीं, हिन्दू को कोई ऐतराज नहीं था

वो तो तब अस्पताल मांग रहा था।

जगह  जगह  मज़ारें बनाकर जमीन कब्जाई जा रही थी, हिन्दू  उन्हीं  मज़ारों पर माथा  टेककर अपने  बच्चों  के लिए स्कूल मांग रहा था।

फिर एक दिन हिंदुओं ने अपने आराध्य श्रीराम जी का अपना एक मंदिर वापस मांग लिया।

लेकिन कुछ लोग रावण की तरह अभिमान में डूबे थे।

   रावण ने  कहा था सीता वापस नहीं करूँगा, ये राम और इसकी वानर सेना क्या ही कर लेगी।

   कलयुग के  रावणों  को भी लगा, मन्दिर  वापस नहीं करेंगे, ये  काल्पनिक राम और  इसकी वानर सेना  क्या ही कर लेगी।
 

बाबर  ना  तो अयोध्या में  पैदा हुआ था और न अयोध्या में मरा था।
उसके नाम से मस्ज़िद देश में कहीं भी बन सकती थी।

देश में  हज़ारों  लाखों मस्जिदों के बनने पर भी  हिन्दू को  ऐतराज नहीं था।

उसे चाहिए था तो बस एक मंदिर, लेकिन उसे मिला क्या?
माथे पर लगाने के लिए  रामभक्तों के रक्त से  सनी  अयोध्या  की मिट्टी, अर्चन के  लिए खून से  लाल सरयू का जल, अर्पण  के लिए ट्रेन  की बोगी  में जली हुई  रामभक्तों की लाशें।

अभी तक स्कूल अस्पताल  नौकरी के सपनों में खोया बहुसंख्यक हिन्दू  जिद पर अड़ गया।                                   उसका  स्वाभिमान जाग गया।                                                                                                                                                         
 वो उठ  खड़ा हुआ, एकजुट हुआ और अपने ही देश  में दोयम दर्जे का नागरिक बने रहने का अभिशाप एक झटके में उखाड़ फेंका।

बात  सिर्फ एक मंदिर की थी, आज वो अपना  हर मन्दिर वापस लेने की जिद पकड़ बैठा है।

   हिंदुओं ने  वो कर दिखाया है, जो संसार की  कोई भी सभ्यता नहीं कर पाई।

 न यहूदी अपने धार्मिक स्थल वापस ले पाए, न ईसाई और न पारसी।
और ना ही मुसलमान यहूदियों या ईसाईयों से अपने धार्मिक स्थल  वापस ले पाए !

लेकिन हिंदुओं ने इनके जबड़े में हाथ डाल कर अपने आराध्य का घर वापस ले लिया।    
                                                                                                                                                    ये मदमस्त वानरों की टोली है,
इनके रास्ते में मत आओ,
भले ही आप राजनीति के सर्वोच्च पद पर हों या धर्म के।
 
ये राम की वानर सेना है, जो लड़ना भी जानती है और अब जीतना भी।

और हां अयोध्या तो झांकी है,  अभी हिंदू राष्ट्र व  मथुरा काशी बाकी है ।

भारत माता की जय
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